वो लड़की नहीं, पार्वती है
कल्पना करो एक कन्या की,
जो शंभू से शांभवी बनी,
आप देखोगे उसका चेहरा,
वो पार्वती की छवि बनी।
देखा है मैंने उसको,
वो काफ़ी चंचल है,
उसकी एक मुस्कान ही,
कई समस्याओं का हल है।
कुछ अलग ही गंभीरता है,
उसके मुख पे सदा,
कभी काम आए न आए,
हमेशा काम आए दुख पे खड़ा।
गलत न होगा कहना,
उसकी ख़ूबसूरती है मुस्कान,
शायद सही होगा कहना,
वो राहत की है दुकान।
उसे देखकर चैन की सांस लेती हूँ,
और हाल पर उसको छोड़ देती हूँ,
वो ख़ुद ही इतना काफ़ी है,
मैं वही से रुख मोड़ लेती हूँ।
पर जो भी है वो जैसी भी है,
अगर एक बार मिल लोगे,
तो कभी छोड़ न पाओगे,
रिश्ता हो या दोस्ती –
उससे तोड़ न पाओगे।
उसकी ज़िंदगी का उसूल है बस इतना सा,
वो तुम्हें कभी खोते न देखेगी,
और छोड़ गए तो उसके पीछे
भागना होगा फ़िज़ूल सा।
सोचोगे शायद भावुक है वो,
तो तुम उसे रोक दोगे,
पर विश्वास मानो उसका चेहरा देख,
तुम अपने ग़म भुला दोगे।
उसकी आवाज़ भी इतनी प्यारी है,
कि वो जो कहेगी, तुम सुनते जाओगे,
उसकी बातों में खोकर,
अपनी बातों को भूलते जाओगे।
और कितना बयान करूँ मैं उसको,
उसमें ख़ूबसूरती की भी अति है,
एक बार जो देख लोगे उसे—
वो लड़की नहीं, पार्वती है…
वो लड़की नहीं, पार्वती है।।
Nice Post