बेटी पढी,लेकिन बची नहीं! - By Roshni kumari

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बेटी पढी,लेकिन बची नहीं! - By Roshni kumari








जिस सच्चाई के पद पर चली वह सच कह ना सकी।
पढ़ी तो थी मौमिता लेकिन बच वह न सकी ।

इलाज करने गई थी वो सबको अपने हृदय से प्यार से।
लेकिन बच वह ना सकी वह उन दरिंदों के वार से ।

आंखो को फोड़ दिया, चश्मे को तोड़ दिया।
घायल करके उस जिन्दा लाश को यूं ही छोड़ दिया।

दीवार पर उसके सिर को रगड़ा गया
नजाने उसको मारा कितना तगड़ा गया।

उस वक्त वो चिल्ला रही थी
ना सुनाई दी किसी को उसकी चीख?
मांगते-मांगते मर गई वो अपनी जान की भीख।

जिस को सहयोग करना था वह खुद उसमें शामिल है।
वो सिर्फ एक डॉक्टर का नहीं पूरे देश का कातिल है ।

जो रक्षा करने वाला था वो खुद अरक्षक बन गया।
जो साथ देने वाला था वो भक्षक बन गया।

उस वक्त उसकी आंखो में ना जाने बहता कितना पानी है,
इस लड़की के साथ ऐसा करना क्या ये इसकी मर्दानी है?

मौमिता तो चली गयी, क्या ये लड़कियों की आजादी है ?
की लड़कियां जितना सह गयी ना उतना कोई सहेगा,
और वो तो नेता का बेटा है न भला कौन? ही उसे कुछ कहेगा।

क्या P.HD करने का यही सौगात है
ये एक नहीं कइयों की करामात है।

ना जाने उन बेशर्मों का क्या इरादा था?
मौमिता को तो बिल्कुल भी ना इसका अंदाजा था ।

इतना आसान नहीं कि कोई अपनी जान की बाजी खेल जाए।
क्या मिलेगी उसको खुशी चाहे वे उम्रभर भी जेल जाए।

मुझे नहीं लगता कि अभी भी नारियां सशक्त है।
जाग जाओ नागरिको को यही सही वक्त है ।

यही सही वक्त है || 


 


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Nice Post

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